*होशियार बच्चा*

होशियार बच्चा बन कर मैंने क्या पाया… ?

जीवन में अक्सर ऐसा भी होता है जब हम बड़े उत्साह से कोई काम करते हैं और प्रतिफल स्वरुप सराहना अथवा पुरस्कार की अपेक्षा करते हैं l अपेक्षा ही क्यों, मन में यह विश्वास भी हो जाता है कि हमें सराहा ही जाएगा l इतने पर यदि सराहना के स्थान पर दण्ड मिले तो क्या दशा होगी भला… क्या तब हमारे मन में सत्प्रयासों के प्रति अविश्वास की भावना नहीं आ जाएगी ? कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ…

उन दिनों कक्षा 10 में था मैं l न जाने सभी विषयों के अध्यापकों की दृष्टि में मैं एक होशियार बच्चा क्यों था ? संभवतः कक्षा 9 के मेरे प्राप्तांकों को देख कर वे ऐसा सोचते होंगे l अब जब सबका मत मेरे विषय में ऐसा था तो मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी अतः मैं भी संतुष्ट ही था l
गणित के सर बहुत सख्त किस्म के अध्यापक थे l शरारती व कमज़ोर छात्रों को अपने ढंग से विचित्र दण्ड देने के लिए प्रख्यात अर्थात कुख्यात भी थे l उनके कक्षा में आने के बाद से ही हम सभी छात्र पूरे मन से पीरियड समाप्त होने की घंटी बजने की प्रतीक्षा किया करते थे l किसी दिन उनका न आना हमारे लिए उत्सव के समान होता था l
वार्षिक परीक्षा में कम समय बचा था l हम अन्य विषयों के साथ साथ गणित की भी तैयारी कर ही रहे थे l गणित में भी बीज गणित सारे फसाद की जड़ था l सर ने कक्षा में बता कर रखा था कि वे बिना किसी पूर्व सूचना के किसी भी दिन बीज गणित से कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं l
एक दिन वे कक्षा में आए और कहा, “अब तक बीज गणित में जो भी पढाया गया है  वह सब आप सबने अच्छे से तैयार कर ही लिया होगा l”
कक्षा में सन्नाटा छाया रहा l उन्होंने चाक उठाया और बोर्ड पर बीज गणित का एक लम्बा सा समीकरण लिख दिया और बोले, “कौन हल कर सकता है इसे ?”
संभवतः कई विद्यार्थी हल कर भी सकते होंगे उसे l मैं स्वयं भी कर सकता था किन्तु ‘जब तक मुसीबत अपने पास न आए उसे निमंत्रण देने के आवश्यकता ही क्या है’ इस सिद्धांत को मानते हुए सभी बिलकुल चुप बैठे थे l “इधर आइये आप” उन्होंने एक छात्र को बुलाया, “ये लो चाक और बोर्ड पर हल करो इसे l”
छात्र आगे आया, उनके हाथ से चाक लिया बोर्ड के पास जा कर कुछ पल सोचता रहा l फिर कुछ लिखा और डस्टर से मिटा दिया l जब 2-3 बार उसने ऐसा ही किया तो सर ने कान पकड़ कर उसे डाँटते हुए एक तरफ खड़े होने के लिए कह दिया l उसके बाद एक-एक करके 6 विद्यार्थियों को बुलाया गया किन्तु सभी को पहले छात्र के साथ एक तरफ खड़ा होना पड़ा था l
“क्या, कोई भी नहीं है जो इसे हल कर सके ?” सर ने कड़कते हुए पूछा l
न जाने कैसे मेरा हाथ उठ गया और उन्होंने मुझे बोर्ड के पास बुला कर चाक पकड़ाते हुए कहा “लो, करो…”
मुझे याद आया कि 2-3 दिन पहले ही यह समीकरण, जो कि अध्याय से पहले दिए गए उदाहरणों से लिया था, मैंने माँ से समझा था और उसके बाद स्वयं हल करके उन्हें दिखा भी दिया था l मैं सर के हाथ से चाक ले कर धीरे-धीरे समीकरण हल करने लगा l हल करने की प्रक्रिया में क्रमानुसार समीकरण छोटा होता गया और अंत में मै उत्तर तक पहुँच गया l
“शाब्बाश” सर ने मेरी पीठ ठोंकते हुए कहा “कोई तो होशियार बच्चा है, पूरी क्लास में जिसे आता है, चलो, ये जो नालायक खड़े हैं इनके गाल पर जोर से एक-एक थप्पड़ लगाओ l”
मुझे काटो तो खून नहीं l अपनी सफलता तथा सर द्वारा की गई प्रशंसा का आनंद काफूर हो चूका था l सर से तो मुझे कोई लगाव था नहीं किन्तु जो मेरे अपने थे, सुख-दुःख के साथी थे, मेरे दोस्त थे उनको मैं पूरी क्लास के सामने भला कैसे मारता !!! क्यों नहीं सर ही इन्हें दण्ड दे देते ! पर मरता क्या न करता l माननी तो थी ही मुझे उनकी बात l
मैं पहले छात्र के पास गया, उसकी आँखों में मुझे कुछ ऐसा दिखा मानो कह रहा हो ‘यार, तू अब सबके सामने मारेगा मुझे ?’ मैंने विवश हो कर हल्के से एक चपत लगाई तो सर की कड़कती हुई आवाज़ आई, “जोर से मारो”
“सर, आप ही…” मैंने कहना चाहा l
“नहीं, तुम ही मारो, और, जोर से मारो” वे फिर से बोले l
मैं चाह कर भी जोर से न मार सका और फिर हल्की सी चपत लगा दी l
“इसे कहते हैं जोर से मारना..? इधर आओ मैं बताता हूँ तुम्हे जोर से कैसे मारते हैं” वे मेरे पास आए और एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल पर मारा l मेरी आँखों के आगे तारे चमक उठे l “ऐसे मारो… l”
तभी पीरियड ख़त्म होने की घंटी बजी और सर यह कहते हए रजिस्टर उठा कर कक्षा के बाहर चले गए, “सब के सब नालायक हो l”
मेरी समझ में कभी नहीं आ पाया कि पूरी कक्षा के सामने समीकरण हल करके, होशियार बच्चा बन कर मैंने क्या पाया… ? 

चनाकार~सदानंद कवीश्वर                                  

प्रस्तुति:–मीनाक्षी आनंद*

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